तुम...................................
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो,
पूर्ण करते हो मेरी अपूर्णता
और पूरा करने के लिये
मेरे अधूरे स्वप्नों को
तैयार करते हो वह ज़मीं जहाँ मैं
उगा सकूँ भविष्य के फूल
नये-पुराने पतियों से भिन्न हो
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो ॥
मैं और तुम
प्रेम के पेड़ की दो डाल
एक पत्ती हरी, एक पत्ती लाल
अपने-अपने रंग लिये खिलते हैं,
मेरी नासमझी पर मुस्कान भरी समझ हो
भिन्न होकर भी मुझसे अभिन्न हो
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो ॥
यह अनोखा प्यार अपना
वार कर एक उम्र पूरी
बुद्दि को न वार पाई,
भाव तो तुमको दिये
पर सोच अपनी दे न पाई
मान्यता देते मेरे "निज" को, मेरे शुभचिन्ह हो,
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो॥
7 comments:
नये-पुराने पतियों से भिन्न हो pankti me lipi gat dosh anarthkaari ho rahaa hai buddhi shabd nazar andaj kiyaa jaa sakataa hai bahut achhi rachana karana lagataa hai aapakee aapakaa swabhaav hai.
aachi kavita hai shailja ji mubarik ho
achchhe jajbaat , sundar prastuti
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति सुन्दर एवम सहज शब्दों में।
हेमन्त कुमार
यह अनोखा प्यार अपना
वार कर एक उम्र पूरी
बुद्दि को न वार पाई,
भाव तो तुमको दिये
पर सोच अपनी दे न पाई
मान्यता देते मेरे "निज" को, मेरे शुभचिन्ह हो,
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो॥
अच्छी रचना.....!!
ये अभी पढ़ा। कितना सुंदर है ये शैलजा। वाह!!!
bhaavnaatmak abhivyaktee
shbd-shbd kaavya...
badhaaee .
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