Wednesday, October 15, 2008

दर्द ने क्या कहा होगा?

दर्द ने तुम को जब छुआ होगा
तुमने उस से क्या कहा होगा?

दिल को अपने ज़ुबां दी भी तो क्या?
दिल पे कुछ उस के असर हुआ होगा?

ये मोह्ब्बत है कि आदत, क्या जानें?
दोस्तों को अक्सर ये शुबहा हुआ होगा।

थक गये होंगे जब सभी जज़्बे
आदमी तब मर गया होगा।

दाग़ कर गोली वतन के सीने में
भूल जाओ वह शर्मसार हुआ होगा।

स्याह कपडों में निकल आई रात
इस शहर में कोई हादसा हुआ होगा।

जाने क्यॊं भुला दिया सब कुछ
चोट का दिल पे असर हुआ होगा।
जो रात के धागे में नींदों ने पिरोये
वे स्वप्न मेरी आँख की नियति बन गए
जगने के हर पल में सजते हैं आँखों में
उनींदे से मेरे भाग्य की स्मिति बन गए!
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टटका सा चम्पा का कोई फूल झरा है
अँधेरे के आँचल पर अक्षर सा सजा है
कहती ही रही रात, स्याह मैं बहुत
कितनी ही रौशनियों से आँचल तो सजा है।
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वो नाराज़ भी मुझ से खुश भी बहुत है
रह भी नहीं सकता कुछ पल मेरे बिना
वो ज़िद में है अपनी, मैं रहूँ न मैं
जानता क्या होगा मेरा, मेरे बिना??
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ये वक्त की है बात, कुछ मैंने कहा है
रिश्तों में सभी के कुछ ऎसा ही हुआ है
डर लाँघ कर चाहत, आती है सामने
कल तुमने कहा था आज मैंने कहा है।
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Sunday, October 12, 2008

आज अपने से निकल कर वेब की दुनिया की चौपाल में बतियाने आ बैठी हूँ। यूँ कविताएँ तो छ्पी हैं और आप लोगों में से कुछ लोगों ने पढ़ीं भी हैं पर अलग से कभी अपने नाम से कोई अलग खाता नहीं खोला। मानोशी ने हैरानी से पूछा " क्या अभी तक ब्लाग नहीं है, अच्छा, मैं भेजती हूँ डिटेल्स की कैसे बना सकते हैं ब्लाग" पर मुझे बहुत दिनों तक लगता रहा कि सब के साथ अपने पल कैसे बाँट सकूँगी?..आधी कच्ची-आधी पकी कविताएँ कैसे सब के सामने रख सकूँगी?..अपना लिखा बहुत कुछ पसंद नहीं ही आता मुझे....पर आज अनूप जी का ब्लाग देखते हुए "क्रिएट ब्लाग" पर स्वत: ही अँगुलियाँ दबीं, उत्सुकता ने आगे धकेला और मन ने समझाया कि केवल अपना मत कहो, अपना और सबका कहो..और अचानक लगा ..साँझे पलों की छाया में हम अपनी और दूसरों की कहते-सुनते कुछ दूर तक चल सकेंगें...