Sunday, October 12, 2008

आज अपने से निकल कर वेब की दुनिया की चौपाल में बतियाने आ बैठी हूँ। यूँ कविताएँ तो छ्पी हैं और आप लोगों में से कुछ लोगों ने पढ़ीं भी हैं पर अलग से कभी अपने नाम से कोई अलग खाता नहीं खोला। मानोशी ने हैरानी से पूछा " क्या अभी तक ब्लाग नहीं है, अच्छा, मैं भेजती हूँ डिटेल्स की कैसे बना सकते हैं ब्लाग" पर मुझे बहुत दिनों तक लगता रहा कि सब के साथ अपने पल कैसे बाँट सकूँगी?..आधी कच्ची-आधी पकी कविताएँ कैसे सब के सामने रख सकूँगी?..अपना लिखा बहुत कुछ पसंद नहीं ही आता मुझे....पर आज अनूप जी का ब्लाग देखते हुए "क्रिएट ब्लाग" पर स्वत: ही अँगुलियाँ दबीं, उत्सुकता ने आगे धकेला और मन ने समझाया कि केवल अपना मत कहो, अपना और सबका कहो..और अचानक लगा ..साँझे पलों की छाया में हम अपनी और दूसरों की कहते-सुनते कुछ दूर तक चल सकेंगें...

1 comment:

Meena C hopra said...

”शब्द-ब्रह्म’ बहुत अच्छी लगी।
दूसरी पढ़्ने जा रही हूं।

मीना