अकेलापन.......................
अकेलापन आया
और बैठ गया पसर के
मेरे और तुम्हारे बीच
डाइनिंग टेबल पर
कभी तुम्हारे बाल बिखेरता,
कभी मुझ पर आँख तरेरता,
अकेलापन करता रहा
छेडछाड दोनों से
और हम बैठे रहे
संवादहीनता के बीच....
कभी सोचा था क्या हमने
कि संबंध ऐसे मौन हो जायेंगे।
9 comments:
कभी सोचा था क्या हमने
कि संबंध ऐसे मौन हो जायेंगे।
सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई
waah kya baat hai ...........
manaw man unsuljhe guthiyo ki kahani hai .......jisaka ek paksh yah bhi hai...........
कभी सोचा था क्या हमने
कि संबंध ऐसे मौन हो जायेंगे।
जी हाँ सम्बन्ध ऐसे ही मौन हो जाते है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
भाव गहन
बस इस कविता में तो आपने सारा का सारा आधुनिक युग ही प्रतिबिम्बित कर दिया,इस कविता को मैं युगान्तरकारिणी रचना स्वीकार करता हूँ सरल शब्दों में कैसी अप्रतिम अभिव्यक्ति दी है आपने ,सहर्ष बधाई
अच्छी अभिव्यक्ति...संक्षिप्त, सटीक और प्रभावी।
सादर,
अमरेन्द्र
मौन सम्बन्ध, आत्म विवेचन को मजबूर कर दिया इस छोटी सी रचना ने !
शुभकामनायें !
namaskar
bahut kam shabdo me aapne bahut kuch kah diya hai , kavita me shbdo ke dwara utppan maun ki bhasha mukhar ho kar sambndho ke baare me bahut kuch kahe jaa rahi hai..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
लाजवाब ऐसा ही होता है जब संवाद विहीन रिश्ते रह जाते है तो !
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
Post a Comment