Sunday, February 15, 2009

लडाई समय के साथ


एक लडाई जारी है समय के साथ,
एक लडाई जारी है अपने साथ।

ठूँसती हूँ, भरती हूँ
कामों के थैलों को बस्ते में दिन के
छूटते हैं बाहर
रखे हर बार गिन के
हूँ परेशान, कि बस्ता क्यों छोटा?
या क्यों कमजोर मेरे कँधे?

एक लडाई जारी है अपने साथ
एक लडाई जारी है समय के साथ

सूरज की आँखों पर
बादल के बाल
दिन के सिकुडते बस्ते का कर के ख्याल
हो जाती हूँ दुखी
कैसे तो कामों के थैलों को ठूँस लूँ, बाँध लूँ
कि सीमित सी आयु में तीन लोक नाप लूँ
फिर-फिर उठती हूँ।

एक लडाई जारी है समय के साथ
एक लडाई जारी है अपने साथ।

असीमित हैं इच्छाएँ
सीमित हैं शक्ति
असीमित हैं भाव
सीमित अभिव्यक्ति
पूछती हूँ असीम से..
क्यों बना के ससीम,
अपना असीम मुझ में भर दिया
सीमित सी आयु और सीमित शक्ति ने बेबस सा कर दिया
इसमें कितना है् तुम्हारा किया और कितना है मेरा
कितना है मेरे हाथ, कितना माथ लिखा तेरा ?
बताओ कैसे तो होगा फैसला???

एक लडाई जारी है समय के साथ
एक लडाई जारी है अपने साथ
एक प्रश्न जारी है तुम्हारे साथ।
...............................................

9 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

वाह शैलजा!

कल सोचा तुमसे मुलाक़ात होगी...इंतज़ार किया।

ये word verification हटा लो।

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है .आपके अनवरत लेखन के लिए मेरी शुभ कामनाएं ...

अभिषेक मिश्र said...

Blog ki ladai mein bhi shubhkaamnaon sahit swagat.

sandhyagupta said...

Sundar abhivyakti.Badhai.

Dr. Shailja Saksena said...

Aap sab ke protsahan ke liye dhanywaad...asha hai aise hi utsah badhate rahenge..

sadar
shailja

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

ladai to zindagi hai tab tak jari rahegi. narayan narayan

अमरेन्द्र: said...
This comment has been removed by the author.
अमरेन्द्र: said...

शैलजा जी,

"लडाई समय के साथ" बहुत ही सामयिक और उत्कृष्ट कविता है।
सार्थक बिम्बों की मदद से कविता और भी रोचक और पठनीय हो गयी है।

सादर,

अमरेन्द्र

Dr. Shailja Saksena said...

dhanywaad aap sab ka. sneh banaye rakhen
Shailja