तनाव की सिलवटों के बीच दबे
चेहरे को उसने उबारा
मँहगे प्रसाधन से चेहरे को सँवारा
सेल से खरीदे मँहगे कपड़ों से खुद को सजाया
ऊँची ऐड़ी पर अपने व्यक्तित्व को टिकाया
अब वह ९ से ५ की दुनिया के लिये तैयार थी
कार्पोरेट दुनिया पर यह उसकी पहली मार थी॥
घर के झमेलों को पर्स में ठूँसा
ओवरटेक करती कार को दिखाया घूँसा
कॉफी और सिगरेट के धुएँ को निगला
तब जाकर भीतर का दिन कुछ पिघला
बॉस का सामना करने को अब तैयार थी।
उस दिन पर यह उसकी दूसरी मार थी।
कॉफी और कोक और सिगरेट और चाय
दिन इनके चँगुल से कैसे बच पाये
फाइलों पर फाइलें, मीटिंग पर मीटिंग
स्थित-प्रज्ञ होने का उपाय कोई बताये
बेबीसिटर, डॉक्टर, स्कूल और क्लासें
ईमेल, चैट, टैक्स्ट दिन कैसे-कैसे हथियाये
अब बेपरवाह बैठी, एक जाम को तैयार थी
दिन के ढ़लने पर यह तीसरी मार थी॥
जितना सिखाया माँ ने, धर्म की पुस्तकों ने
उड़ा दिया दफ्तर के लाभ-हानि आँकड़ों ने
आँकड़ा लाभ का ऊपर उठता है
व्यक्ति उस आँकड़े के नीचे दबता है
आँकड़ा उठाने में वह समभागी है
हर सुबह वह आँकडों से लड़़ने को तैयार है
आज के समय पर यह उसकी तीखी मार है।
2 comments:
घर के झमेलों को
पर्स में ठूंस
बेपरवाह
हो गयी है
बैलगाड़ी नहीं
रेल नहीं
अब वो
हवाई जहाज
हो गयी है
आज की नारी
को सलाम
वो आदमी को
बहुत पीछे छोड़
संतुलन की एक
किताब हो गयी है।
़़़़़़
अच्छा लिखती हैं ।
Vah kya khoob likhati hain badhai ke sath hi abhar bhi
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