Thursday, June 23, 2011

अकेले तुम!!
डॉ. शैलजा सक्सेना

परेशान हूँ मैं तुम्हारे लिये
कितने नि:संग, अकेले हो
दुनिया की तमाम हलचल से हट कर
अकेले किनारे खड़े हो

बढ़्ते अपराध
बढ़ती मँहगाई
बढ़ता भ्रष्टाचार
बढ़ता देह-व्यापार
बढ़ते विदेशी कदम
अपने देश की धरती पर
हत्या, दुर्घटना, बाढ़, सूखा
किसी ने भी तो तुम्हें नहीं छुआ।

तुम हर सुबह अपना एक स्वार्थ ले कर पैदा होते हो
और हर रात एक स्वार्थ लिए मर जाते हो।

तुम्हारा न कोई इतिहास है
न भविष्य
केवल स्वार्थ है तुम्हारा हविष्य।
तुम्हारी न कोई सभ्यता है न संस्कृति
आखिर किस की हो तुम अनुकृति?
नहीं जानती.........
तुम्हारे लिये न कोई संबंध है न कोई सभ्यता
इसीलिये तुम्हे कभी कुछ नहीं व्यापता।
तुम्हारे लिये न कोई ईश्वर है न कोई वेद मंत्र
केवल एक स्वार्थ-तंत्र।
किसी का ऋण तुम्हें नहीं बाँधता
न देश का, न देव का, न पिता का न माता का।

एक ही संबंध
एक ही अर्थ तुम जानते हो
और अनेक सार्थकताओं से भरी इस दुनिया में
केवल स्वार्थ को अपना मानते हो।

परेशान हूँ मैं तुम्हारे लिये
क्योंकि अनाम हो कर भी तुम
बहुसंख्यक हो
सीमित हो कर भी विचरते हो
एक काल से दूसरे काल में
तमाशाई
परजीवी
तुम!!

परेशान हूँ मैं तुम्हारे लिये
कि तुम किसी कोमल भाव को
समझ नहीं पाओगे कभी भी
प्रेम के अनेक आयामों में से
एक भी नहीं छू पाओगे
भावना का कोई रंग उगाएगा नहीं
सीने में तुम्हारे संवेदना के इंद्रधनुष
और तुम
एक अजीब सा जीवन लेकर
अनाथ से मर जाओगे,

परेशान हूँ मैं तुम्हारे लिये।

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