Wednesday, November 18, 2009

तुम...................................

तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो,
पूर्ण करते हो मेरी अपूर्णता
और पूरा करने के लिये
मेरे अधूरे स्वप्नों को
तैयार करते हो वह ज़मीं जहाँ मैं
उगा सकूँ भविष्य के फूल
नये-पुराने पतियों से भिन्न हो
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो ॥

मैं और तुम
प्रेम के पेड़ की दो डाल
एक पत्ती हरी, एक पत्ती लाल
अपने-अपने रंग लिये खिलते हैं,
मेरी नासमझी पर मुस्कान भरी समझ हो
भिन्न होकर भी मुझसे अभिन्न हो
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो ॥

यह अनोखा प्यार अपना
वार कर एक उम्र पूरी
बुद्दि को न वार पाई,
भाव तो तुमको दिये
पर सोच अपनी दे न पाई
मान्यता देते मेरे "निज" को, मेरे शुभचिन्ह हो,
तुम मेरे वाक्य के विराम चिन्ह हो॥